सोमवार, 31 अक्तूबर 2022

छठ पूजा का महत्व

1. यह पूर्णरूप से प्रकृति की पूजा है, जिस प्रकृति से हम सबका जीवन चलता है। 

 2. वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित पूरे संसार में ऊर्जा के स्रोत भगवान भाष्कर की आराधना की जाती है। 

 3. उगते सूरज की पूजा तो सब करते है, इस पर्व में डूबते सूरज की भी पूजा की जाती है। 

 4. यह पर्व किसी भी जाति व सम्प्रदाय के बंधन से मुक्त है। इसे हर कोई कर सकता है। 

 5. यह सामाजिक सहजीविता का अनुपम उदाहरण है। इसमें प्रयुक्त होने वाले कुछ वस्तु डोम यानि दलित के घर से भी आते है। 

 6. इसमें अमीर-गरीब, स्त्री-पुरुष, बच्चे-बूढ़े , ऊंच-नीच किसी का भेद नहीं है। 

 7. छठी मैया की पूजा प्रकृति में उपलब्ध सामान्य वस्तु केला, नींबू, बैगन, मूली, गन्ना, फल, गुड़ व दूध से बनी वस्तुओं से होती है। कोई कीमती चढ़ावा नहीं। 

 8. स्वच्छता व पवित्रता का सबसे अधिक ध्यान रखा जाता है। 

 9. इसमें किसी पंडित - पुरोहित या किसी तंत्र-मंत्र की जरूरत नहीं है। 

 10. इसमें भक्त व भगवान के बीच सीधा संवाद है,- आत्मा से परमात्मा का सीधा सम्पर्क बिना किसी के मदद के। यह पवित्र मन से पूर्ण समर्पण का पर्व है। 11. इस पर्व को 70 साल तक उम्र के लोग करते है। करीब 3 दिन का निर्जला उपवास के बाद सुबह 4 बजे से भींगे बदन ठंडे पानी में ठंड के मौसम में करीब 2 घण्टे पानी में खड़े होकर भगवान सूर्यदेव व छठी मैया की आराधना करते है, लेकिन आज तक कहीं किसी के भी सर्दी-जुकाम तक होने की शिकायत नहीं मिली।  यह है छठी मैया व सूर्य देव के पूजा का महत्व। साक्षात प्रमाण है इनके शक्ति का। 

कौन हैं छठी मैया ?

लोगों में यह एक आम जिज्ञासा यह रही है कि भगवान सूर्य की उपासना के लोक महापर्व छठ में सूर्य के साथ जिन छठी मैया की अथाह शक्तियों के गीत गाए जाते हैं, वे कौन हैं। ज्यादातर लोग इन्हें शास्त्र की नहीं, लोक मानस की उपज मानते हैं। लेकिन हमारे पुराणों में यत्र-तत्र इन देवी के संकेत जरूर खोजे जा सकते हैं। पौराणिक कथा के अनुसार सूर्य और षष्ठी अथवा छठी का संबंध भाई और बहन का है। षष्ठी एक मातृका शक्ति हैं जिनकी पहली पूजा स्वयं सूर्य ने की थी। 'मार्कण्डेय पुराण' के अनुसार प्रकृति ने अपनी अथाह शक्तियों को कई अंशों में विभाजित कर  रखा है। प्रकृति के छठे अंश को 'देवसेना' कहा गया है। प्रकृति का छठा अंश होने के कारण इनका एक नाम षष्ठी भी है। देवसेना या षष्ठी श्रेष्ठ मातृका और समस्त लोकों के बालक-बालिकाओं की रक्षिका  हैं। इनका एक नाम कात्यायनी भी  है जिनकी पूजा नवरात्रि की षष्ठी तिथि को होती रही है। पुराणों में निःसंतान राजा प्रियंवद द्वारा इन्हीं देवी षष्ठी का व्रत करने की कथा है। छठी षष्ठी का अपभ्रंश हो सकता है। आज भी छठव्रती छठी मैया से संतानों के लंबे जीवन, आरोग्य और सुख-समृद्धि का वरदान मांगते हैं। शिशु के जन्म के छह दिनों बाद इन्हीं षष्ठी या छठी देवी की पूजा का आयोजन होता है जिसे बोलचाल की भाषा में छठिहार कहते हैं। छठी मैया की एक आध्यात्मिक पृष्ठभूमि भी हो सकती है। अध्यात्म कहता है कि सूर्य के सात घोड़ों पर सवार की सात किरणों का मानव जीवन पर अलग-अलग प्रभाव पड़ता है। सूर्य की छठी किरण को आरोग्य और भक्ति का मार्ग प्रशस्त करने वाला माना गया है। संभव है कि सूर्य की इस छठी किरण का प्रवेश अध्यात्म से लोकजीवन में छठी मैया के रूप में हुआ हो।



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